
नई दिल्ली:
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए गए इस्तीफे ने देश की सियासत में हलचल मचा दी है। अब इस इस्तीफे को लेकर एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है। सूत्रों के मुताबिक, धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से मतभेद चल रहे थे, जो समय के साथ और भी गहरे होते चले गए।
सूत्रों का दावा: लंबे समय से चल रहा था टकराव
विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि उपराष्ट्रपति और सरकार के बीच नीतिगत और संवैधानिक मामलों को लेकर कई बार असहमति की स्थिति उत्पन्न हुई। हालाँकि, सार्वजनिक रूप से कभी कोई बयानबाज़ी नहीं की गई, लेकिन अंदरखाने यह तनाव बढ़ता जा रहा था।
संसदीय कार्यवाही में असहजता
बताया जा रहा है कि संसद की कार्यवाही के संचालन को लेकर भी कई बार टकराव की स्थिति बनी। धनखड़, जो राज्यसभा के सभापति भी थे, कुछ विधेयकों की प्रक्रिया और चर्चा को लेकर सरकार के दृष्टिकोण से असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने कई बार तटस्थता और संसद की गरिमा बनाए रखने पर जोर दिया, जो कथित तौर पर सत्ता पक्ष को रास नहीं आया।
धनखड़ की भूमिका और स्वतंत्र सोच
धनखड़ एक अनुभवी राजनेता रहे हैं और उन्होंने उपराष्ट्रपति बनने के बाद कई मुद्दों पर स्वतंत्र सोच और विचार व्यक्त किए। उनकी स्पष्टवादिता और संवैधानिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्धता को सराहा गया, लेकिन यही बातें सत्ता के गलियारों में असहजता का कारण भी बनीं।
सरकार की चुप्पी, अटकलों को हवा
सरकार की ओर से अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस चुप्पी से अटकलों को और बल मिला है। क्या यह इस्तीफा स्वेच्छा से था या परिस्थितियों का दबाव? यह सवाल अब राजनीतिक और पत्रकारिता जगत में गूंज रहा है।
क्या आगे कोई नई भूमिका निभाएंगे?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब यह भी चर्चा हो रही है कि क्या वे किसी नई राजनीतिक या संवैधानिक भूमिका की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर यह पूर्ण रूप से सक्रिय राजनीति से दूरी का संकेत है। अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी।